चढावा


भूख थे वहाँ कतार में खड़े वो ,और पेट उनके,

आग में पक रहे थे चेहरे, पहले लार लार हुए ,फिर सूख कर लटक गए,

इंतज़ार में जीभ पपड़ीदार हुयी, फिर आस में भोजन के,

मगर शर्म नही आयी उसे, वो भीतर अपने आसन पे विराजमान,

मजे से चढ़ावे खाता रहा।

Comments

vipinkizindagi said…
बेहतरीन लिखा है आपने
Rakesh Kaushik said…
behtreen
ab isse jyada kya kahun?

aapne kitne kam shabdo me kitna kuch btaa diya

mindblowing
i m speechless

Rakesh Kaushik
बहुत ही अच्छा।
Udan Tashtari said…
सटीक रचना..वाह!

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