चढावा
भूख थे वहाँ कतार में खड़े वो ,और पेट उनके,
आग में पक रहे थे चेहरे, पहले लार लार हुए ,फिर सूख कर लटक गए,
इंतज़ार में जीभ पपड़ीदार हुयी, फिर आस में भोजन के,
मगर शर्म नही आयी उसे, वो भीतर अपने आसन पे विराजमान,
मजे से चढ़ावे खाता रहा।
भूख थे वहाँ कतार में खड़े वो ,और पेट उनके,
आग में पक रहे थे चेहरे, पहले लार लार हुए ,फिर सूख कर लटक गए,
इंतज़ार में जीभ पपड़ीदार हुयी, फिर आस में भोजन के,
मगर शर्म नही आयी उसे, वो भीतर अपने आसन पे विराजमान,
मजे से चढ़ावे खाता रहा।
Comments
ab isse jyada kya kahun?
aapne kitne kam shabdo me kitna kuch btaa diya
mindblowing
i m speechless
Rakesh Kaushik