ख़त ....... जगजीत सिंह

जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा,
जिनको एक उम्र कलेजे से लगाये रखा,
दीन जिनको, जिन्हें ईमान बनाये रखा,
तुने दुनिया की निगाहों से जो बचकर लिखें,
साल हा साल मेरे नाम बराबर लिखे,
कभी दिन को तो, कभी रात को उठकर लिखें......
तेरी खुशबू में बसे ख़त, मैं जलाता कैसे,
प्यार में डूबे हुए ख़त, मैं जलाता कैसे,
तेरे हाथो के लिखे ख़त, मैं जलाता कैसे,
तेरे ख़त आज मैं, गंगा में बहा आया हूँ,
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ.......

Comments

इतनी उम्दा गजल कभी कभी ही लिखी जाती है। मैंने इसे पूरी पढी है और मैं दूसरे साथियों से भी कहूंगा कि इसे पूरी पढे हालांकि जगजीत सिंह ने इस गजल का कुछ ही हिस्से को अपनी आवाज दी है।
Deena said…
shukriya doston!!!

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