एक बार जी भर के सज़ा क्यूँ नही देते? गर इश्क-ऐ-खता हूँ तो मिटा क्यूँ नही देते? साया हूँ तो साथ न रखने की वजह क्या है? पत्थर हूँ तो रस्ते से हटा क्यूँ नही देते?? ________________ मुद्दत से किसी से मिलने की थी आरजू, ख्वाहिशे दीदार में सबकुछ गवा दिया, किसी ने कहा की आयेंगे वो रात को, इतना किया उजाला की अपना घर ही जला दिया.... ___________________ कतरा कतरा बहते थे आंसू , हम उन्हें सुखा भी न पाए, इससे बड़ी वफ़ा की सज़ा क्या होगी? वो रोये हमसे लिपट कर , किसी और के लिए, और हम उन्हें हटा भी न पाए...... ___________ गमें ज़िन्दगी के मारे है, हर बाजी जीत के भी हारे है, मेरी झोली में जो पत्थर है, ये मेरे चाहने वालो ने मारे है..... __________________
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