जरूरत क्या है...............


ख़ुद को मेरा दोस्त बनाने की जरूरत क्या है,
दोस्त बनके दगा देने की जरूरत क्या है,
अगर कहा होता तो हम ख़ुद ही चले जाते,
यू आपको चेहरा छुपाने की जरूरत क्या है,
सोचा था रहेंगे एक घर बनाके बड़े सुकून से,
न मिल सका सुकून तो महलों की जरूरत क्या है,
है कौन मेरा जो बहाता मेरी मंजार पर अश्क,
मुस्कुराते रहना तुम ,मुझे तेरे अश्को की जरूरत क्या है,
मैं तो जान भी दे सकती थी तुझपे ऐ दोस्त,
पर इस तरह मुझे आजमाने की जरुरत क्या है,
दबी हूँ मिटटी में इस कदर की बड़ा दर्द है,
मुझ पर फूल डाल कर और दबाने की जरुरत क्या है,
मुझ से कर के दोस्ती अगर पूरा हो गया हो शौक,
तो किसी और के जज्बातों से खेलने की जरुरत क्या है ।

Comments

Abhishek Ojha said…
जिस किसी ने भी लिखा हो अच्छा लिखा है !
सुंदर रचना परोसने के लिए सादर धन्यवाद।
Anonymous said…
achhi lagi ye kavita
Anonymous said…
bari achhi lines hain ye to, jiska bhi likha parosa hai lekin humne kahaya aapki rasoi me isliye dhanyvaad
Anonymous said…
सोचा था रहेंगे एक घर बनाके बड़े सुकून से,
vha bhut hi gahari baat.sundar rachana. badhai ho.
सुन्दर अति सुन्दर।

Popular posts from this blog

प्यार से प्यार तो कर के देख....

पतझर में सीलन...